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Hymn No. 2200 | Date: 01-Mar-2001
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महफिल में बैठा है यारों का यार, निरखते हुये बरसाये प्यार नजरों से।
महफिल में बैठा है यारों का यार, निरखते हुये बरसाये प्यार नजरों से।
होश नही वहां किसी को अपना, अपलक निगाहो से दिखाये सबको प्यार भरा सपना।
चल रहा है दौर शेरो शायरियों का, विभोर होके सुनते रहते है सब।
कोई ना चूकना चाहता है मौका, बुझाना लेना चाहे सदियों से लगी हुयी प्यास को आज।
पर देखो कमाल यार का, जितना बूझाये उतनी बढती जाये प्यास प्यार का।
होती है प्यार के इस दौर में मिट्टी झड़प, नगमों में ढालके दिये जाते हें ताने उलाहने प्यार में।
कोई रहता है गमजदा प्यार को अपना बनाने का, रूठके भी जतलाये प्यार को अपने।
पुकार होते है यहाँ प्यार के सपने, गैर भी लगने लग जाते है प्यार में अपने।
दुनियावी रंगमंच पे खेले जाते है नाटक एक से एक, पर इस नाटक में भाग लेता है खुदा खुद भी।
पहले तो करना पड़ता है सारोबार प्यार में उसे, फिर तरबतर करके प्यार में ले चलता अपने जहान में।


- डॉ.संतोष सिंह