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Hymn No. 1992 | Date: 22-Sep-2000
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सच पूछो तो न जाना आज तक वास्तव में क्या अच्छा है बुरा।
सच पूछो तो न जाना आज तक वास्तव में क्या अच्छा है बुरा।
एक अच्छा दूसरें के नजरों में ठहरता है बुरा, बूरे को भी हात होता है वो।
मानक क्या है, किस किसके आधार में गढा भरा है ये भेद सब कुछ का संसार में।
लाखों पेमाने है लेकिन सब के सब उलटे हें दूजे के क्यूँ ना है सब एक सा।
क्या सोचके बनाया तूने जग को, इतना भारी अंतर विरोध क्यूँ पैंदा हो गया।
जन्म लेके तुझसे नश्वर शरीर, फिर हेंर फेंर क्यों हो गया तेरे मौलीक स्वरूप में।
जानते हुये है अनजान हम, कर्मों का दुष्कर चक्रव्यूह इतना तूने क्यों रचाया।
इक बार को जो घुसे भेदने से पहले, माया की मकड़ी सारा खून चूस जाये।
क्या तुझे अच्छा लगता है ये हाल देंखके हमारा, तू ही बता कैंसे टूंटेगा यें जाल।
क्यों हमारी दाल गलती नहीं, कब आयेगी पारी तुझे खूब प्यार कर पाने की।


- डॉ.संतोष सिंह